Monday, December 8, 2008

तेरी इश्क की असर हे!

हर वो एहसास को अल्फाज देना क्या जरुरी हे,
इस्क में हर पल उनकी याद आना क्या जरुरी हे,
अरे इक अर्सों से हम ये पूछते रहे हें,
क्या सबको जिंदगी में मुहबत करना जरुरी हे?


अरे वो दिन था सुहाना जब हम अपने थे,
अब केसी अजब सी ये मज़बूरी हे,
वो रोये तो हम यहाँ खूब रोते हें,
वो मुस्कुराए तो यहाँ मुस्कुराना भी जरुरी हे|

जालिम ये मुहब्बत किउन दिलको तडपाती हे,
चेन तो गई हे कबकी, अब तो नींद भी जा रही हे,
मून मोद्लूं हर एक से जो तेरी आँखों में आसूं दे,
दिल तो धड़कती हे मगर हर धड़कन पे नाम तो तेरी हे|

खुदा करे में यूँही लिखता रहू कुछ खास तेरी यादों में,
ये कुछ अल्फाज मेरे दिलकी तेरी इश्क की असर हे!

Labels:

Monday, December 1, 2008

और इक गुफ्तगू मुहब्बत की!

ये एहसास हे हमें के भूल हुइहे हमसे,
फिर भी ज़माने को बताना पड़ता हे,
हम खुदको बेकसूर तो नहीं कहते,
कसूरवार कभी खुदको बनना पड़ता हे!

समझ लीजिये ये इक अजब सी मज़बूरी थी,
वरना हम तो किसीकी सपनो की यादें होते,
प्यार तो हम अपनी तहे दिल से बहत करते हें,
सिर्फ़ जान ही जो हे उनके कदमोमे हम रखते!

मासा आल्हा क्या खूब बनाई ये दुनिया मुहब्बत की,
कोई गबार भी लिखने लगा हे सायरी फुर्सत में,
चाँद भी आज खूब खिली हे चान्दिनी बिखराके,
डूब ना हो जाऊँ आज कहीं तेरी इन मद्होस आँखों में!

खायालें तो खूब अति हे आपकी रोज नींदों में,
डर हे तो सिर्फ़ खो जाने की इस सपनो की मेले में!

Labels:

Monday, November 24, 2008

याद बड़ी आ रही किउन तेरी!

सायद बरसों बीत गए हो किसकी इंतजार में,
वो मासूम सी चेहेरेपे इक प्यारी सी मुस्कान ने,
अपनी उन्ग्लिओं से लटों को सुलझाती हुई बोली,
कास वो केहती "में हूँ तुझे ढेर सारा प्यार देने!"

अब भी याद हे हर वो पल जो तुम्हारे साथ बिताये,
मिलके सजायेथे दोनों इक साथ कभी हजार सपने,
ये ऑंखें तो कई साल पहले सुख छुकी थी,
नमी चली आई कब मेरे अन्खोमे बिन पूछे नजाने|

अपनी जिनगगी में जेसे कोई इक सन्नाटा छा गई थी,
अब ही जान डाली हो जेसे तेरे पायल की झंकार ने,
होंठ तो खिल उठी हे फिर इक बार बरसों के बाद,
बस इंतजार हे थिरकने की वो बोल फिर गुनगुनाने|

जाडें की मौसम में चादर ओढे सो गई थी जेसे यादें मेरी,
अभी तो नींद से जागा हूँ फिर याद बड़ी रही किउन तेरी!

ये छोटी सी दिल की आवाज हे, ये में मेरा सबसे अच्छी दोस्त रूबी को डेडीकेट कर रहा हूँ!

Labels:

Tuesday, November 18, 2008

इक दिया जले छोटी सी !

इक दिया जले छोटी सी करे अंधेरे को उजिआरा,
ना बेर उसकी चन्दा से ना सोचे खुदको तारा|

जलती रहेती सारी रात खुदको यूँही जलाके,
चाहे मन्दिर हो या गाँव की छोटी सी कुटिया,
चाहे मधुशाला हो या किसी गाँव की चौराह,
जलाती रहती ढेरों अर्मनोंको उजिआरा बनाके|

कभी सुनसान हवेली की चौकीदारी में तो,
कभी बचों की केलिए रोज जलती रहती हे,
कभी धुन्दलती बूढी अन्खोकी सहारा बनती,
तो कभी दिवाली की जस्न की हिस्सा बनती हे|

क्या कुछ बनती नहीं वो औरों की खातिर,
कोई समझे आखिर उसकी कुर्वानी हे क्या,
किसकी उमीद केलिए तो वो जलती रहती हे,
किसीको भी पता नहीं उसकी पहचान हे क्या|

Labels:

हम बदलेंगे नहीं...

हम बदलेंगे नहीं, किउंकि हमें बदलना ही नहीं,
बदलावों की बाते बहत करते हैं उची आवाज में,
वादों की पहाडों पे बैठके भासन तो बहत देते हैं,
अपनी स्वार्थ की बलिदान तो कभी देते ही नहीं|

आवादी बढ़ने से कोई आगे बढ़ सकता ही नहीं,
जो हमसे पीछे थे वो आगे कई दूर चले गए हैं,
हम अपनी बत्ती को बुझाते हुए कहने लगे,
तुमने अपनी घरमे किउन दिया जलाते नहीं|

देखो उन लोगों को जो ख़ुद चुनते हे अपनी राह,
चाहे परिवार केलिए हो या पडोशी केलिए हो,
हम तो घरोंसे सुनते हुए मजे लुटते रहते हैं,
ख़ुद खुस तो औरो की उमीद से क्या परवाह|

जो खुदको बदल ना पाया वो दुनिया क्या बदलेगा,
सोता हुआ ज़मीर क्या ख़ुदगरजी को समझ पायेगा|

Labels:

Wednesday, November 12, 2008

प्यार के बिना तो ये जिंदगी बेकार होता हे...

क्या समझाऊ तुम्हे के तुम्हे प्यार हे कितना,
किउन मनाऊं तुम्हे जो तुम्हे हे फिर रूठना,
गुलाव किउन तोडून जो कांटे सरे हे चुवना,
किउन के ये मौसम हे सुहाना ये समां भी सुहाना!

तेरी खुसुबू अब हवाओं में महक ने लगी हे,
तेरी मुस्कुर्हट इन घटाओं में उड़ने लगी हे,
तेरी पलकों पे मेरी जानत नजर आती हे,
लगता हे जेसे में चल रहा हूँ ये रस्ता खड़ी हे!

फिर एक बार नीदों में ख्वाब सजने लगे हे,
फिर एक बार यादों में तुम आने लगी हे,
ये हवा फिर से एक बार बहने लगी हे,
जेसे चाँदनी के इंतजार में चंदा खड़ी हो!

होता हे इसे जब किसीको प्यार होता हे,
प्यार के बिना तो ये जिंदगी बेकार होता हे!

Labels:

Monday, November 10, 2008

वो कब आयेगी...

इक उमीद सी जगी हे बरसो बाद,
जेसे सावन फ़िर बरस ने बाली हे,
जेसे बादल फिर गरज ने बाली हे,
इक बार तू मुझे रही हे याद!

कई साल बीत गए हे पता नहीं,
अनगिनत सावन बरस छूके हे,
नजाने कितने बाहार खिल छुकी हे
सिर्फ़ तेरे सिबा कुछ भी पता नहीं!

सुबह को सूरज दिखती हे,
रात को चाँद नजर आता हे,
एक बद्दुआ बन गई जिंदगी मेरी,
सिर्फ़ तेरी इबादत नजर आता हे,

सुनी सी सड़क पे में खड़ा अकेला,
तेरे इंतजार में की कब तू आयेगी,
पल नहीं सालों तक तेरे आस में,
एक बार तू कहदे मुझे "में आउंगी"!

तेरे प्यार मेरे किस्मत में नहीं हे,
ये मेरी बदकिस्मती नहीं तो और क्या
सुकून मिलती मेरे दिल को तब,
जब तेरी नफरत मुझे तडपाती हे!

Labels: