Tuesday, November 18, 2008

हम बदलेंगे नहीं...

हम बदलेंगे नहीं, किउंकि हमें बदलना ही नहीं,
बदलावों की बाते बहत करते हैं उची आवाज में,
वादों की पहाडों पे बैठके भासन तो बहत देते हैं,
अपनी स्वार्थ की बलिदान तो कभी देते ही नहीं|

आवादी बढ़ने से कोई आगे बढ़ सकता ही नहीं,
जो हमसे पीछे थे वो आगे कई दूर चले गए हैं,
हम अपनी बत्ती को बुझाते हुए कहने लगे,
तुमने अपनी घरमे किउन दिया जलाते नहीं|

देखो उन लोगों को जो ख़ुद चुनते हे अपनी राह,
चाहे परिवार केलिए हो या पडोशी केलिए हो,
हम तो घरोंसे सुनते हुए मजे लुटते रहते हैं,
ख़ुद खुस तो औरो की उमीद से क्या परवाह|

जो खुदको बदल ना पाया वो दुनिया क्या बदलेगा,
सोता हुआ ज़मीर क्या ख़ुदगरजी को समझ पायेगा|

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