बेहेम पे हकीकत की और एक दस्तक!
एक मासूम सा चेहरा थी वो जेसे सुबह की किरण,
खिलती हुई इक कल्ली की जेसी वो लैब पे हसी,
गुजरे हुए रात की यादें जेसे वो रेसम सी जुल्फें,
लगती वो एक हकीकत या कोई या वेहेम जेसी|
देखे एक वार कोई तो जेसे मुहब्बत कर बेठे,
रोज ख्वाबों में उसे आने की उम्मीद कर बेठे,
जीने की चाह ना रखे वो उसके बगाएर,
इसी एक बड़ी भूल की तमन्ना कर बेठे|
बनाई गई हे वो जेसे फुरसत में खुदा से,
जन्नत की मदहोसी हो उन प्यारी आँखों में,
कांटे बी मुरझाए अगर उसकी पाओं पड़े,
बाहार खिल उठे उसकी हर एक मुस्कान में|
ये कोई ख्वाब तो नहीं में देख राह हूँ अब तक,
ये मेरी बेहेम पे हकीकत की और एक दस्तक|
खिलती हुई इक कल्ली की जेसी वो लैब पे हसी,
गुजरे हुए रात की यादें जेसे वो रेसम सी जुल्फें,
लगती वो एक हकीकत या कोई या वेहेम जेसी|
देखे एक वार कोई तो जेसे मुहब्बत कर बेठे,
रोज ख्वाबों में उसे आने की उम्मीद कर बेठे,
जीने की चाह ना रखे वो उसके बगाएर,
इसी एक बड़ी भूल की तमन्ना कर बेठे|
बनाई गई हे वो जेसे फुरसत में खुदा से,
जन्नत की मदहोसी हो उन प्यारी आँखों में,
कांटे बी मुरझाए अगर उसकी पाओं पड़े,
बाहार खिल उठे उसकी हर एक मुस्कान में|
ये कोई ख्वाब तो नहीं में देख राह हूँ अब तक,
ये मेरी बेहेम पे हकीकत की और एक दस्तक|