Wednesday, September 24, 2008

बेहेम पे हकीकत की और एक दस्तक!

एक मासूम सा चेहरा थी वो जेसे सुबह की किरण,
खिलती हुई इक कल्ली की जेसी वो लैब पे हसी,
गुजरे हुए रात की यादें जेसे वो रेसम सी जुल्फें,
लगती वो एक हकीकत या कोई या वेहेम जेसी|

देखे एक वार कोई तो जेसे मुहब्बत कर बेठे,
रोज ख्वाबों में उसे आने की उम्मीद कर बेठे,
जीने की चाह ना रखे वो उसके बगाएर,
इसी एक बड़ी भूल की तमन्ना कर बेठे|

बनाई गई हे वो जेसे फुरसत में खुदा से,
जन्नत की मदहोसी हो उन प्यारी आँखों में,
कांटे बी मुरझाए अगर उसकी पाओं पड़े,
बाहार खिल उठे उसकी हर एक मुस्कान में|

ये कोई ख्वाब तो नहीं में देख राह हूँ अब तक,
ये मेरी बेहेम पे हकीकत की और एक दस्तक|

Tuesday, September 23, 2008

फिर एक बार लढना हे सैतान से

इक बूंद आंसू मेरी मन की आँखों से टपक पड़ी,
लगा सायद में रो रहा हूँ अपनी बेबसी जूझ कर,
ज़हर मेरी बुजदिली की जला रही हे ये बदन को,
अब खड़ा हूँ मौत की इंतजार में जिंदगी को भूल कर|

हेवानियत की इन्तहा हो गई हो जेसे इस दुनिया में,
खून की चादर लपेटे हुए खडा हे सैतान मेरे सामने,
में तो था एक अल्लाह का बन्दा इस इंसान के भेस में,
हाए ये में क्या कर राहा हूँ बयान ना कर सकूँ अपनी जुवामे|

बह रही हे खून की नदिया अपनी की अपनों के हाथों,
ना कुछ कर सका सिर्फ़ खड़ा हो कर देख रहा हूँ,
हूँ एक वेहेम में की मेरा क्या जाता हे जो में रोऊँ,
सायद पता नही कल रोना पड़े मुझे खून की आंसू|

हे अलाह के बन्दे जाग उठ इस गेहेरे नींद से,
वक्त ने आवाज दी हे लढना हे फिर इक बार सैतान से|

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