Thursday, May 22, 2008

एक छोटी सी उमीद !

इतने दूर चले आये की याद नही रहा क्या छोड़ आये पीछे ,
वो जन्नत था या कुछ हसीं पल किसीके साथ बिताये थे ,
ऐसा महसूस होता हे की एक दिया जलाथा बरसों पहेले ,
वो साडी खुसी को बुझाके अज एक डरावना कलि रात छाई हे |

में अकेला कहाँ भटकता फीर रहां हूँ कुछ पता नहीं हे ,
घन घोर उदासी जेसे मुझे चारो तरफ़ से जकड रही हे ,
आंसू तो टपक ने इन्तजार में कबसे आँखों में भरी हे ,
मगर कोई बेचेनी इन आंसू की बूंदों को रोक जेसे रखा हे |

जाहान भी देखू धुन्द्ला नजर राहा हे ,
एक काली चादर ओढ़ के बेठी हे मेरा लाखों अरमाने ,
एक बार नजर जाए तो टूट पड़ेंगी उस नन्ही सी उमीद पर जेसे ,
एक अजब सी घबराहट मुझे अन्दर ही अन्दर खाए जा रही हे |

इन्तजार में हूँ कब वो आएगी मेरे जिंदगी में बाहार लेके ,
कब हटाएगी वो काली चादर मेरे अरमानों के ऊपर से ,
कोई हे जो बताएगा मुझे कब वो आएगी इस जिंदगी में ,
में क्या जानू वो हे या नही मगर जी राहा हूँ वोही उमीद से |

1 Comments:

Blogger Suvendu said...

Hallo Amit Sir its a nice hindi kitab.I think it will help me to improve my hindi knowledge.I have also a blog plz give some comment there Suvendu.

November 10, 2008 at 8:02 PM  

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