Monday, May 26, 2008

एक अज्नबी!!!

वो साम् मुझे अब भी याद हे | में दोस्तों के साथ खेल रही थी | इस्कूल से लौट ने के बाद रश्मी ही मेरी एक ही दोस्त थी जो मेरे साथ खेलती थी | वो मेरी जान से बढ़कर भी थी | मेरी इसी कोई राज नहीं थी जो रश्मी को पता नहीं था | राजू चाचा के आम् चोरी करने से लेकर रवी की माँ की मुर्गिओं को खुला छोड़ देना, सब उसे पता हे | हाँ में तो गाओं की रहने वाली थी, इस से बढ़कर कोई राज की बात क्या हो सकती हे मेरे लिए | मुझे तो नहीं लगता हे की ऐसा कोई हो सकता हे, फीर भी कुछ बात और के ऊपर छोड़ देना ही थिक होता हे | मगर में अब वो संध्या नहीं रही | काफी कुछ बदलाव गया मेरे ऊपर | में जेसे पर्बत के चोतीओं से नीकल कर मैन्दन में बह रही हूँ | ना मुझ में वो पुरानी बली रफ्तार रही ना वो घंघनाहत रही | अब में सीर्फ़ एक बेहती हुई धारा हूं | बारिस में फूल जाती हूं तो गर्मी के मौसम में सुख जाती हूं | अपनी जिंदगी जेसे अपनी ही नहीं रही | और के सहारे जीना पड़ता हे | वो साम् मुझे अब भी याद हे | गाओं की पास एक मंदीर हें जहाँ में रोज साम् को जाती थी दिया जलाने केलीये | रोज की तराह कीसन मुझसे मिलने आया था बाहाँ पे | कीसन तो मेरी जान हें जेसे, उसके एक आवाज़ से जेसे मेरे रोम रोम खड़े हो जाते थे | उसकी एक मुझे सबसे अच्छी लगती थी, उसकी गाने | काफी अछा गाता था | मेरे लिए रोज एक नई गीत काहाँ से सीख के आता था | हाँ दसवी पास नहीं था मगर कीसी BA पास से कम नहीं था | जो भी था मेरे लीये अछा था | मेरी काफ़ी ख़याल रखता था | कहीं पेड़ पे चढ़के आम् लाता तो कभी किभी किसीके बगीचे में चोरी से अमृत लाता था | इतना दंत टी थी उसको मगर ना अपने ये काम से कभी वो बाज आता | अगर में ज्यादा बक बक करती तो यही बोलके मुझे चुप कर देता था, "तुम्हे खुस देख के मेरा सारे गम चले जाते हें | तुम्हारी सीबा मेरा इस दिनुइआ में हें ही कौन | अगर तुम्हारी खुसी के बदले मुझे दो टिन लोगोंकी गाली या मार खाने पडतो में सह लूँगा | मगर तुम्हारे आँखों में एक बूंद आंसू आये तो उसकी सामत समझो |" और में बस चुप | जेसे मेरी मुंह में पट्टी किसने बाँध दिया हो | इतने साल बीत गए हें उस से मिले हुए | मेरे बिन वो पागल अब क्या कर राहा होगा उसका कोई पता नहीं | कास भाग्बन करे ये सब झुती बधन तोडके में फीर उसके पास चलिजाउन? हाँ मेरा तो फीर भूल गई, उस साम् जब हम दोनों बातें कर रहेथे तब चम्पा मौसी हमे छुपके से देख लिया था और घरमे एके माँ को सब बतादिया | अरे मुझे क्या पता था माँ मिछे एके खड़ी थी | कीसन एक कसके छाता मारी | मुझे लगा जेसे मेरे गाल पे पदीथी | मेरे कान को पकड़ ती हुई घरको घसीट के ले गई | और वोही थी मेरी कीसन के साथ आखरी बार मिलना | रात को पिटा जी आये और माँ उनके साथ क्या खुसुर पुसुर कर रही थी, ये तो मुझे पता नहीं | पिटा जी आये और मुझे अपनी बोरिया बिस्तर बंधने के लीये कह गए | मुझे लगा जेसे मुझे कह रहेथे कम और धमका रहेथे ज्यादा | और सुबह मुझे लेगये सेहर अपनी मामा के पास | ना मेने कीसन को देखा ना मेने रश्मी को | मेरा बचपन वोहीं पे मिटटी में मिल गई | होंठ से जेसे मुस्कान ही गम हो गई | जब भी ये बात याद आती हें मेरे आँखों में पानी जाती हें | हें भगबान मेने ऐसा क्या जुर्म कियाथा जिसकी इतनी बड़ी सजा मुझे दे रहे हो आप | मुझे मर किउन नहीं देते |

आगे
भी हे...

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